चंचल शीतल उज्वल निर्मल पंखुड़ी जैसी है वो कोमल लहराती बहलाती बलखाती इठलाती नदी सी है वो नटखट उछलती कूदती चलती ठहरती पवन सी है वो सरपट सुनहरी सलेटी गुलाबी सफ़ेद निशा सी है वो सुंदर पवित्र मधुर सुरीली अकथ ऋचा सी है वो पावन
छोटी-छोटी सी बातें दिल को है छू जाती और रिश्ते है बन जाते पल भर मे ही अचंभित हम है रह जाते और जब हम है खोजते शब्द नहीं मिलते ना ही मिलता कोई कारण बस होता है ये आभास उस अनजाने से चहरे पे इस दिल को है पुरा विश्वास
मेरे एहसासों का एहसास है तुझे? मेरी तरह जिन्दगी की प्यास है तुझे? भटक रह हूँ ना जाने किस चीज़ की तलाश में मंज़िल को पाना भले ही मुमकिन ना हो पर दुआ है तेरा साथ तो रहे
जो थी कभी मेरी अपनी, ना जाने क्यों परायी हो रही है जानी पहचानी लगती थी, कैसे गुमनाम हो रही है कोशिश की बहुत समझने की, फिर भी बेमानी सी हो रही है हर शब्द याद है मुझे, पर कविता मेरी खो रही है
खुदगर्ज़ हैं वो जो अपने प्यार पर गुमां करते हैं नहीं जानते कि मोहोब्बत सभी को होती है पर जिंदा है वोही जो बस उनके नाम पर मरते हैं ख्वाहिशें करना ही काफी नही है दोस्त उनके मिलने की तूफानों से गुज़र सकते हैं हर कोई यहाँ पर मंज़िल मिली है उन्हें जो उम्र भर उम्मीद के साथ चल सकते हैं
यूं मसला अरमानों को कि खुद को मिटाते चले गए हसते रहे तेरी बेवफाई पर और दिल को रुलाते चले गए बसाई थी जो ख्वाबों की बस्ती उसका हर तिनका लुटाता चले गए कुछ ना पूछो अब हम से कि हम खुद को भुलाते चले गए
राज़ क्या है जिंदगी का नहीं ये कोई भी जान पाया कहीँ ख़ुशी का उजाला है तो कहीँ ग़मों का काला साया कहीँ खुद ही से लड़ती रूह है तो कहीँ जलती हुई नश्वर काया इक वृत्त जैसी लगती है कि खो जाती है वैसे, जैसे था पाया क्यों भटके है तू राही कि इक ही ओर इसने सबको ले जाना बचपना है कि हर चीज़ पाने को मचले सब जानती है कि बुढ़ापा है छाया राज़ क्या है जिंदगी का नहीं ये कोई भी जान पाया
होश वालों शिक्वा ना करो कि हम भी होश की बातें करेंगे हमें ज़रा होश में तो आने दो ख़्वाब लेने का हक सबका है ख़्वाब होंगे हमारे भी सच्चे ज़रा झूठे ख्वाब से बाहर तो आने दो
तुम्हे बस चाहते जाने को जी चाहता है आज कुछ कर जाने को जी चाहता है तुम्हारे संग जीने को जी चाहता है तुम पर मिट जाने को जी चाहता है चाहते हैं हम तुम्हे जितना उतना आज बस कह जाने को जी चाहता है हमें चाहत हो सिर्फ तुम्हारी ऐसी चाहत हो ये जी चाहता है दिल पर ज़ोर नही है पर ये दिल सिर्फ तुम्हे चाहे ये जी चाहता है महोब्बत की ग़र कोई हद होती है तो आज उस हद से गुज़र जाने को जी चाहता है जो देखा तुमको एक बार हमने तो अब देखते जाने को जी चाहता है