कवितायेँ
Kalam Ki Kalpana Dil Ki Jubani
Wednesday, 16 January 2008
अरमां
यूं मसला अरमानों को कि
खुद को मिटाते चले गए
हसते रहे तेरी बेवफाई पर
और दिल को रुलाते चले गए
बसाई थी जो ख्वाबों की बस्ती
उसका हर तिनका लुटाता चले गए
कुछ ना पूछो अब हम से कि
हम खुद को भुलाते चले गए
अनंत आनंद गुप्ता
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