कवितायेँ
Kalam Ki Kalpana Dil Ki Jubani
Wednesday, 16 January 2008
कविता मेरी
जो थी कभी मेरी अपनी, ना जाने क्यों परायी हो रही है
जानी पहचानी लगती थी, कैसे गुमनाम हो रही है
कोशिश की बहुत समझने की, फिर भी बेमानी सी हो रही है
हर शब्द याद है मुझे, पर कविता मेरी खो रही है
अनंत आनंद गुप्ता
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