Wednesday 16 January, 2008

खुदगर्ज़


खुदगर्ज़ हैं वो जो अपने प्यार पर गुमां करते हैं
नहीं जानते कि मोहोब्बत सभी को होती है
पर जिंदा है वोही जो बस उनके नाम पर मरते हैं
ख्वाहिशें करना ही काफी नही है दोस्त उनके मिलने की
तूफानों से गुज़र सकते हैं हर कोई यहाँ
पर मंज़िल मिली है उन्हें जो उम्र भर उम्मीद के साथ चल सकते हैं


अनंत आनंद गुप्ता

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